FIRST AND ONLY ONE RAJYA SABHA MEMBER (3 April 1974 to 2 April 1980)
DoB-13 March 1903 Left for heavenly abode-18 September 1995
Sri Shivdayal Singh Chaurasia was born in an affluent family in Kharika village (now known as Telibagh) in Lucknow district of Uttar Pradesh, . His father Parag Ram Chaurasia was a gold and silver businessman. His mother Ram Pyari died in his childhood. Chaurasia did his BA and LLB from Canning College and became a Barrister in 1929Therafter he practised in Lower Court of Lucknow,high Court of UP,Bihar and Supreme Court .
भारत की स्वतंत्रता के पहले और उसके बाद सामाजिक समानता और वंचित तबके के हक की लड़ाई लड़ने वालों में शिवदयाल सिंह चौरसिया (13 मार्च 1903 से 18 सितंबर 1995) का नाम अगली पंक्ति में शामिल है. साइमन कमीशन के सामने वंचितों की समस्याओं को रखने से लेकर काका कालेलकर की अध्यक्षता में गठित पहले पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य के रूप में चौरसिया ने हर मोर्चे पर वंचितों की लड़ाई लड़ी. पहले पिछड़ा वर्ग आयोग में उनका 67 पेज का असहमति नोट ही आगे चलकर मंडल कमीशन की रिपोर्ट तैयार करने की बुनियाद बना. राज्य सभा के सदस्य रहे चौरसिया ने अंतिम सांस तक न्यायालय से लेकर सड़क तक वंचित तबके के हकों की लड़ाई लड़ी.
चौरसिया का जन्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के खरिका गांव में हुआ था, जिसे इस समय तेलीबाग के नाम से जाना जाता है. इनके पिता पराग राम चौरसिया सोने चांदी के व्यवसायी थे. बचपन में ही उनकी मां राम प्यारी का निधन हो गया. संपन्न परिवार में जन्मे चौरसिया ने विलियम मिशन हाईस्कूल, लखनऊ से मैट्रिक और कैनिंग कॉलेज से बीएसी और एलएलबी की डिग्री हासिल की और बैरिस्टर बने.
लोक अदालत के जनक:-सन् 1928 में शिवदयाल चौरसिया जी एल एल बी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सन् 1929 में रजिस्टर्ड एडवोकेट हो गये। इन्होंने लखनऊ के लोवर कोर्ट और लखनऊ हाईकोर्ट तथा बिहार के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली में भी सफलता पूर्वक वकालत की।
सन 1927 में ब्रिटिश हुकूमत ने साइमन कमीशन का गठन किया। और जब सात ब्रिटिश सांसद सर जान आल्सेबराक साइमन की अध्यक्षता में साइमन कमीशन भारत आया ।और यह कमीशन 5 जनवरी 1928 को लखनऊ पहुंचा ।तब लखनऊ में श्री शिव दयाल सिंह चौरसिया जी के पिताजी के प्रयास से बरई, तंबोली महासभा के सेक्रेटरी जंगी लाल चौरसिया के द्वारा असमानता और भेदभाव के विरुद्ध साइमन कमीशन को सुधार अपनी मांग रखकर ज्ञापन दिया।
तथा उस समय श्री शिव दयाल सिंह चौरसिया जी गवाहों की हिंदी में व्यक्तिगत सुनवाई को अंग्रेजी में अनुवाद कर साइमन सर को बताया तथा उसे लिखकर देने जैसा चुनौती पूर्ण कार्य को बखूबी से अंजाम दिया ।
साथ ही स्वयं डिप्रेस्डड क्लासेस की ओर से अपना क्रांतिकारी बयान कलम बंद करवाया ।
जिसके लिए सर साइमन जी ने श्री शिव दयाल सिंह चौरसिया जी का बहुत आभार ब्यक्त किया और कृतज्ञता प्रकट की । साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट 7 जून 1930 में ब्रिटिश हुकूमत को सौंप दी।
जब ब्रिटेन में गोलमेज सम्मेलन आयोजित हुआ, तब श्री शिव दयाल सिंह चौरसिया जी को भी (साइमन कमीशन के सामने अपने कलम बंद बयान तथा कार्य के कारण) उनको भी गोलमेज सम्मेलन में ब्रिटिश हुकूमत की ओर से बुलावा पत्र आया था। परंतु किन्हीं अपरिहार्य कारण से श्री शिव दयाल सिंह चौरसिया जी गैरमौजूदगी सम्मेलन में प्रतिभाग करने नहीं जा सके।
चौरसिया 1929 में बने यूनाइटेड प्रॉविंस हिंदू बैकवर्ड क्लास लीग से शुरुआत से ही जुड़े रहे. उन्होंने 1930 के दशक के शुरुआत में हिंदू बैकवर्ड शब्द प्रचलित किया, जिससे पिछड़े समाज की डिप्रेस्ड क्लास से अलग पहचान हो सके. सामान्यतया डिप्रेस्ड क्लास से अछूत होने का अर्थ निकलता था. चौससिया ने यह कहा कि पिछड़े वर्ग के लोग दरअसल शूद्र हैं, जो भारत के मूलनिवासी हैं. (इंडियाज साइलेंट रिवॉल्यूशन- द राइज आफ द लो कास्ट्स इन नॉर्थ इंडियन पॉलिटिक्स), लेखक क्रिस्टोफे जेफ्रले, पेज 223)
चौरसिया ने आरक्षण पर काफी जोर दिया. उनका मानना था कि जब तक किसी समुदाय को महत्वपूर्ण स्थानों तक पहुंचने का मौका नहीं मिलता, तब तक समाज में बदलाव नहीं हो सकता. अगर उच्च शिक्षित व्यक्ति और डिग्रीधारक व्यक्ति को प्रमुख पद पर बैठाया जाए, तभी वह किसी चीज को नियंत्रण करने की स्थिति में आ सकता है. चौरसिया ने विधानसभाओं और लोकसभा में भी पिछड़े वर्ग को आरक्षण दिए जाने की मांग की थी.
श्री शिव दयाल सिंह चौरसिया हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के एक अच्छे वकील थे।
माननीय शिव दयाल सिंह चौरसिया जी उत्तर प्रदेश के पूर्व राजपाल माता प्रसाद जी के कानूनी सलाहकार भी रहे।
चौरसिया का झुकाव शुरुआत से वंचित तबके को अधिकार दिलाने की ओर था. उन्होंने भीमराव आंबेडकर द्वारा 1938 में आयोजित पहले डिप्रेस्ड क्लास कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया और डॉ. आंबेडकर के साथ डिप्रेस्ड लीग में काम किया.
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 340 की व्यवस्था के अंतर्गत 29 जनवरी 1953 को भारत के राष्ट्रपति ने अन्य पिछड़े वर्ग को परिभाषित करने, उनके सामाजिक आर्थिक राजनीतिक उत्थान एवं प्रगति हेतु काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहले पिछड़े वर्ग आयोग का गठन किया. चौरसिया भी आयोग के सदस्य मनोनीत किए गए. इस संबंध में 30 अक्टूबर 1953 को उन्होंने डॉ. आंबेडकर के साथ व्यापक विचार विमर्श किया था. कालेलकर कमीशन के सदस्य के रूप में उनके लिखे असहमति नोट में मुख्य जोर पिछड़े वर्ग को ज्यादा से ज्यादा अधिकार देने को लेकर ही था.
इन्होंने लखनऊ के अपने साथियों– एडवोकेट गौरीशंकर पाल, रामचरण मल्लाह, बदलूराम रसिक, महादेव प्रसाद धानुक, छंगालाल बहेलिया, चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु, रामचंद्र बनौध, स्वामी अछूतानंद आदि के साथ मिलकर बैकवर्ड क्लासेस लीग की स्थापना की. बाद में देश भर में इसका गठन किया. तभी से अपने आवास पर कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए शानदार व्यवस्था कर रखी थी, जिसे वह जीवन भर चलाते रहे.
1967 में इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली से लोकसभा चुनाव भी लड़ा। 1974 में कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश से इन्हें राज्यसभा भेजा। वह प्रसिद्ध उद्योगपति के. के. बिड़ला को चुनाव में हरा कर राज्यसभा में गए। वह सांसद रहकर देश के गरीबों के लिए विधि निर्माण में लगे रहे।कांग्रेस (आई) के सदस्य के रूप में चौरसिया 3 अप्रैल 1974 से लेकर 2 अप्रैल 1980 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे और संसद में रहकर उन्होंने वंचित तबके की आवाज बुलंद की.
गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता देना उनके जीवन का अहम लक्ष्य रहा. उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एचएन भगवती के साथ मुफ्त कानूनी सहायता देने के सिलसिले में उन्होंने बैठकें की. चौरसिया के प्रयासों से अदालतों में नि:शुल्क कानूनी सहायता का प्रचलन हुआ और संसद में कानून पारित करवाकर भारतीय संविधान में जुड़वाकर इस व्यवस्था को संवैधानिक समर्थन दिलाया गया. लोक अदालतों को उसी विधि की एक कड़ी माना जा सकता है.
चौरसिया को बहुजनों की शैक्षिक दुर्दशा से बड़ी पीड़ा होती थी. वे व्याप्त निरक्षरता को बहुजनों के पतन और दासता का कारण मानते थे. इसलिए वह शिक्षा पर बहुत अधिक बल देते थे. चौरसिया अपने दृढ़ निश्चय के साथ कहा करते थे कि मेरा नाम चौरसिया है और मैं हिंदू समाज की असमानता को चौरस करके ही मरूंगा. अवधी और भोजपुरी भाषा में चौरस शब्द का इस्तेमाल समतल करने के लिए होता है. चौरसिया की इच्छा थी कि हिंदू समाज समतल हो और इसमें ऊंच-नीच और आर्थिक गैर बराबरी खत्म हो.
चौरसिया पहले नेता थे, जिन्होंने वंचित तबके की महिलाओं को अलग से प्रतिनिधित्व देने की मांग रखी. उनका कहना था कि ऊंची जाति की महिलाएं ज्यादा पढ़ी-लिखी होती हैं और अगर महिलाओं का प्रतिशत अलग से तय नहीं किया गया तो आरक्षण का पूरा लाभ ऊंची जातियों के हक में चला जाएगा. (राष्ट्रव्यापी पिछड़ा वर्ग आंदोलन के जनक मा. शिवदयाल सिंह चौरसिया, लेखक- सुरेंद्र पाल चौरसिया)
चौरसिया ने बामसेफ, डीएस4 और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के साथ भी मिलकर काम किया. डीके खापर्डे, दीना भाना एवं कांशीराम के साथ मिलकर उन्होंने एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों को एकजुट किया. उनके जानने वालों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में जब सत्ता परिवर्तन हुआ और बसपा के हाथ में पहली बार सत्ता आई तो उन्होंने शुगर की बीमारी के बावजूद उस दिन मिठाई खाई थी और कहा था कि मेरा संघर्ष और जीवन सफल हुआ.
चौरसिया जी 18.9.1995 का मृत्यु हुआ। पर ,वे एक बहुत बड़ा अनसुलझा प्रश्न छोड़ गए हैं जिसको वह अपने जीवनकाल में पूरा नहीं कर पाए। वह कहा करते थे कि पिछड़ा(SC ST OBC) और अल्पसंख्यकों (MC) की जातियों को उनकी जनसंख्या के आधार पर न्यायालयों, सरकारी नौकरियों आदि में प्रतिनिधित्व कब मिलेगा ?सही मायने में, शिवदयाल सिंह चौरसिया देश भर के पिछड़ों के एक सम्मानित वयोवृद्ध नेता थे। उनके योगदान को चौरसिया समाज अवश्य भूल गया है और आज उसके नेता उन वर्गों के पीछे दौड़ भाग रहे हैं जो चौरसिया समाज सहित अन्य पिछड़े वर्गों को पिछले श्रेणियों में देखना चाहते हैं। चौरसिया समाज के चंद नेता अपने चंद स्वार्थों के कारण चौरसिया समाज को पीछे धकेल रहे हैं और समाज को तोड़ने की दिशा में काम कर रहे हैं। ऐसे लोग सिर्फ पाखंडवाद पर समाज को चलाना चाहते हैं। सही दिशा नहीं देना चाहते, क्योंकि वह जानते हैं कि चौरसिया समाज का उत्थान और विकास हुआ तो उनको पूछने वाला और मंचो पर फूल, माला, माइक देने वाला कोई नहीं रहेगा।