RAILWAY LOCO PILOT
बिहार में जन्मी पली बढ़ी चौरसिया समाज की एक ऐसी बेटी शालिनी चौरसिया का जिसने आतंक के गढ़ से निकल कर आज रेलवे ड्राइवर बन कर हजारों जिंदगियों को प्रतिदिन ढो रही है अपने साहस, जज्बे के साथ। ऐसे जज्बे को बार-बार प्रणाम करने का मन करता है।
बिहार के जिस इलाके की पहचान नक्सल और दहशत थी वहां की बेटियां अब इस मिथक को तोड़ने का प्रयास कर रही है. घर से निकल कर स्कूल, कॉलेज के रास्ते वो अब ऐसे मुकाम और ओहदों पर जा रही हैं जो इलाके के लोगों के लिये गर्व के साथ-साथ नई शुरूआत के तौर पर देखी जा रही है.
नक्सल प्रभावित क्षेत्र कैमूर की. कैमूर जिले के चैनपुर के छोटे से कस्बे से शालिनी ने न सिर्फ अशिक्षा का मिथक तोड़ा बल्कि इलाके की पहली लड़की बनी जो रेलवे ड्राइवर बनी. रेलवे में ड्राइवर की नौकरी करने वाली शालिनी के पिता किसान हैं.
पांच भाई बहनों में सबसे बड़ी शालिनी ने बताया कि कि कैमूर जैसे छोटे और नक्सल प्रभावित जिले में पढने-लिखने में काफी परेशानी होती थी लेकिन मैंने अपने इरादों से कभी समझौता नहीं किया. मैंने पढ़ाई के लिये अपने नाना-नानी के घर का रूख किया जो उत्तर प्रदेश में हैं.
उत्तर प्रदेश के चंदौली से शालिनी ने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की. शालिनी ने बताया कि पढ़ते-पढ़ते मेरे मन में लोको पायलट बनने का ख्याल आया. मैंने सोचा कि जब लड़के रेलवे के ड्राइवर हो सकते है तो हम लड़कियां क्यों नहीं.
घर के बडी बेटी होने के नाते माता पिता का भी खुब साथ मिला फिर अहमदाबाद रेलवे बोर्ड मे लोको पायलट के पद पर चयन हो गया. आज शालिनी अपने बहनों सहित सभी लड़कियों को जागरूक कर रही है कि आप किसी भी क्षेत्र में पढ़ लिख कर जाओ.
शालिनी के पिता अनिल कुमार चौरसिया भी मानते हैं कि कैमूर नक्सल प्रभाविक क्षेत्र होने के साथ-साथ काफी छोटा जिला है. इस कारण पढ़ाई लिखाई में काफी परेशानी होती है. शालिनी को रेलवे में नौकरी मिली तो उसके गांव समेत आसपास के इलाके की लड़कियां भी पढ़ाई के लिये शहरों का रूख करने लगीं.